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रेगिस्तान की चुप्पी में एक छुपी हुई अकुलाहट है। हवा अपनी बातें सेवण घास के कान में कहती रहती है। लू के चूमते ही पानी छूमंतर हो जाता है। यहाँ रेत सोनल है, आकाश नीला है और लोगों के दिल गहरे हैं। इस रेगिस्तान में जन्मते ही मैं किताबों के बीच अपनी आँखें खोलता हूँ। अपने पिता शेरजी माड़साब की इतिहास की पुस्तकों से दुनिया के बहुत बड़े होने के बारे में जानता हूँ।
स्नातक में हिंदी साहित्य पढ़ने के बाद पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर की पढ़ाई करता हूँ। आकाशवाणी में बोलने की नौकरी करने लगता हूँ, फिर अचानक सेवण घास के कान में कही हवा की बातें याद करने लगता हूँ। वे बातें कहानियाँ हैं, उदासी, बिछोह और प्रेम की चाहना की कहानियाँ।
ब्लॉग पर लिखने के समय मित्र कहते थे, इन कहानियों की किताब होनी चाहिए। मैं रेगिस्तान के जीवन की इन कहानियों को शैलेश भारतवासी को सुनाता हूँ। वह इसे अनूठा बना देते हैं कि मैं एक लेखक हो जाता हूँ। पहले मुझे रेडियो पर आवाज़ के ज़रिये श्रोता जानते थे फिर मुझे किताबें पढ़ने वाले लोग जानने लगे।
अब एक नया कहानी-संग्रह आपके सामने है, ‘मिट जाने तक’ । इस कहानी-संग्रह में आधुनिक रेगिस्तान है कि अब तक रेगिस्तान में वह संसार भी प्रवेश कर चुका है, जो इतिहास की पुस्तकों में पढ़ा था। लेकिन प्रेम, चाहना और टूटन अब भी वैसी ही है कि रेत में मिलकर रेत हो जाना ही सद्गति है।