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‘तट से नही पानी से बँधती है नाव’ संग्रह की कविताएँ जीवन को उसके मूल तक जाकर खोजने की ज़िद से पैदा हुई हैं और ज़मीन से आसमान तक उसकी बहुत सारी तहों और उसके बहुत सारे रंगों को पकड़ने की बेचैनी के बीच रची गई हैं। इनमें जो सुख-दुख, चोट-चीख़, उल्लास-उछाह है, वह दरअसल कविता नहीं, जीवन को कविता के आईने में लिखने की कोशिश है।