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इस संग्रह की कविताओं में विराट स्वप्न नहीं, छोटी इच्छाएँ हैं, जो अपनी नेकनीयती और आकार से विराट को प्रश्नांकित कर देती हैं। ये महत्वाकांक्षाओं के नहीं, सहजता और संभावनाओं के पंख लगाकर उड़ती हैं। इनमें किफ़ायत की भाषा है। संवाद की शैली है। और जहाँ कवि ने गद्य-कविता के ओसारे में पैर रखे हैं, वहाँ शैली के साथ किया गया संवाद भी है। पिछले पचास बरसों में हिंदी कविता में प्रकृति के साथ संवाद निरंतर कम होता गया है, लेकिन मुदित की कविताओं में प्रकृति मुख्य तत्व की तरह उपस्थित है- हमारे आसपास फैली प्रकृति, मनुष्य के व्यवहार की प्रकृति और अंतर्मन की प्रकृति! इनमें पेड़ की छाँव से रची गई कविताएँ हैं। और विशेष बात यह कि छाँव को याद है, वह रंगों का त्याग कर चुका पेड़ है। ऐसा पेड़, जिसकी दृढ़ता भाषिक भाष्यों से परे है। ~गीत चतुर्वेदी