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किताब : जाना जरुरी है क्या Jana Jaruri Hai Kya
लेखिका : ऐश्वर्या शर्मा Aishwarya Sharma
कविता संग्रह Poetry
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उतना कभी किसी को नहीं मिलता जितने की चाह होती है लेकिन उतना हर बार बच जाता है जितने के साथ जीवन जिया जा सके। जो बचा, जो जिया, जो जीना बाक़ी है, जिसमें प्रतीक्षा छिपी है, जहाँ प्रेम का वास है, जहाँ जीवन की हर भावना और विभिन्न पहलू शामिल हैं, जिस क्षण जीवन का अर्थ समझा, जहाँ ख़ुद को निरर्थक पाया और ना जाने ऐसी कितनी ही बातें जिनका जब निचोड़ निकाला गया तो बनी ना जाने कितनी ही कविताएँ। लगभग चार-पाँच बरस पहले अपने आप को अलग-अलग प्रवृत्ति की भावनाओं में जब जकड़ा हुआ पाया तब लिखना शुरू कर ख़ुद को भीतर से खाली करना शुरू कर दिया। जहाँ पहले मन में अलग-अलग तरह के विचारों का घेराव था। अब वहाँ वसन्त में खिले फूलों सी ऊर्जा का निवास है। कुछ समय पश्चात जब लिखने के साथ, आप सभी के साथ इसे बांटना शुरू किया तो जाना कि हम सबके सुख-दुःख, हीन-भावना, ईर्ष्या, प्रेमभाव आदि भावनाएँ लगभग एक जैसी ही होती हैं। बस इन तक पहुँचने का हमारा माध्यम अलग-अलग है। आप सभी ने जब मेरे लेखन को अपने दैनिक जीवन के उस एक क्षण में जगह दी और सराहा, तब मैंने जाना कि जो जैसा है उसे ठीक वैसा महसूस करना, ठीक-ठीक वैसा ही कह पाना दोनों अलग बातें हैं। किसी को ये कहने और दर्शाने का अवसर मिलता है तो किसी को इसे पढ़ने का। हमारे रहने के लिए जगह मिलना शायद आसान है, परन्तु हमारे जिये हुए के लिए जगह मिलना बहुत बड़ी बात है। मुझे अपनी भावनाओं को किताब की शक्ल देने का अवसर मिला है। लगभग दो बरस पहले ये सोचा नहीं था कि मेरे लिखे को डायरी, मोबाइल का नोटपैड, सोशल मीडिया के अतिरिक्त भी कोई जगह मिलेगी। मुझे आज ये जगह मिल चुकी है। ये किताब उन सभी लोगों के दिलों तक पहुँचने का प्रयास है जिनके जीवन के किसी एक हिस्से में एक वस्तु, व्यक्ति, जगह आदि की प्रतीक्षा, घात लगाए बैठी रहती है। जहाँ उन्हें ज़रूरत है किसी के लौट आने की या ख़ुद कहीं तक पहुँच जाने की। अगर यह उनकी जीवनशैली के किसी रोज़, एक कोने में क्षण भर अपनी टेक लगा पाए या इन कविताओं की किसी एक पंक्ति में वे स्वयं को प्रतीक्षारत ढूँढ पाए तो मैं समझूँगी मेरा लेखन सदा के लिए सार्थक हो गया है। इसे लिखते हुए दिल की धड़कन तेज़ है, हाथ काँप रहे हैं। मन उत्सुकता से भरा है और चेहरे पर खुशी है। इस भावना को महसूस करते हुए अपना जिया हुआ, देखा हुआ, महसूस किया हुआ कविताओं के रूप में आप सबको सौंप रही हूँ। अंत में अपनी बात को विराम देने के साथ बस ये कहना चाहूँगी कि मंज़िल तक पहुँचने के लिए यात्रा की ओर पहला कदम हमें ही बढ़ाना होगा। ये किताब मेरा पहला कदम है। और यहाँ से मेरी यात्रा आरम्भ हो चुकी है।
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किताब : बल्लियाँ balliyan
लेखक : स्वप्निल जैन Swapnil Jain
उपन्यास Novel
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कोरोना की प्रथम लहर से पहले का दौर था। देश तमाशे की चपेट में था। जहाँ एक तरफ़ विश्व की बाक़ी सरकारें कोरोना से बचाव के उपायों के बारे में विमर्श कर रही थी, एक्शन ले रही थी, वहीं हमारी सरकार एक राज्य में विधायकों के जोड़-तोड़ कर अपनी पार्टी की सरकार बनाने की पुरज़ोर कोशिश में लगी हुई थी। और फिर अचानक, एक दिन एलान हुआ रूह कँपा देने वाले संपूर्ण लॉकडाउन का। पूरा देश और उसके लोग छोटे- छोटे पिंजरों में क़ैद हो गए। लॉकडाउन के दौरान ना सिर्फ़ घरों गाँवों और शहरों की तालाबंदी कर दी गई थी, बल्कि राज्यों की सरहदों को भी सील कर दिया गया था और इसका एहसास मुझे तब हुआ जब मुझे पता चला कि मैं उस पार अपने दोस्तों से मिलने नहीं जा सकता। मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से अपाहिज महसूस कर रहा था।जब सब कुछ ठप्प पड़ गया था, तब उम्मीद ज़िंदा रखने के लिए नज़र सिर्फ़ रिश्तों की तरफ़ घूमती थी। रिश्ते वो नहीं जो आपको मिले, रिश्ते वो जिन्हें आपने बनाया। फोन और वीडियो कॉल अपनी जगह पर थे, लेकिन उस वक़्त आमने-सामने मिलने की जो हूक थी, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता था। इसी हूक से उपजे हमारे उपन्यास के मुख्य किरदार हिमांशु और नमिता। विकासशील भारत की तस्वीर हिमांशु और नमिता, देश के विकास के चक्कर में हिमांशु और नमिता का व्यक्तिगत विकास कहीं पीछे छूट गया था। उनके बचपन का प्यार लॉन्ग डिस्टेंस की पटरी पर जैसे-तैसे चल रहा था, लेकिन अब दोनों के दिल में अपना डिस्टेंस कम से कमतर करने की कसक उठने लगी थी। दोनों अपने बीच से स्क्रीन नाम का पर्दा हटा देना चाहते थे। वो चाहते थे कि उनकी आवाज़ बिना किसी माइक्रोफ़ोन की मदद के, सीधी कानों में जाये। जब दोनों एक दूसरे से मिलने ही वाले थे कि तभी लॉकडाउन लग गया और फिर उस कसक ने जन्म दिया इस कहानी को। उस दौर में सरकार ने लॉकडाउन के दौरान शारीरिक ज़रूरतों का ध्यान रखने की कोशिश की, लेकिन वो मानसिक और भावनात्मक ज़रूरतों पर ध्यान देना भूल गए। ऐसे में यह कहानी हिमांशु और नमिता के प्रेम संबंध के ज़रिये उस दौर को फिर से देखने की कोशिश करती है, ताकि हमें फिर से वो दौर कभी देखना ना पड़े।
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