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एक बार एक भारतीय पुलिस अधिकारी, टंट्या को पकड़ने के लिए उसके पसंदीदा ठिकाने के पास डेरा जमाया। कुछ दिन बाद उसे दाढ़ी बनाने के लिए एक नाई की जरूरत पड़ी। उसने पास के गाँव से एक नाई को बुलाया। नाई आया और पुलिस अफसर की दाढ़ी बनाने लगा। वह बहुत बातूनी था तथा दाढ़ी बनाते हुए टंट्या डकैत के बारे में बेपरवाही से बातचीत कर रहा था। दाढ़ी बनाने के बाद उसने कहा-‘अब? उसको पकड़ने का एक ही तरीका है।’ पुलिस अफसर ने पूछा-‘वह कैसे ?’ नाई अब दाढ़ी बना चुका था-‘इस तरह’ कहते हुए, उसने पुलिस अफसर की नाक काट ली और ‘मैं ही टंट्या हूँ’, बोलते हुए, उछल कर जंगल में भाग गया। -ST James's Gazette, May 6, 1889 टंट्या का नाम भील समुदाय (अखबार के अनुसार ‘निम्नजातियों’) में महानायकों की तरह लिया जाता है। लोकगीतों में टंट्या को आदिवासियों का महानायक बताया गया है। वह 'Rob Roy Of India' कहा जाता। वह कई वर्षों तक खानदेश के विशाल क्षेत्र में घूमता रहा। उसको पकड़ने के सारे प्रयास विफल हुए। निराशा की भावना ने पुलिस को पगला दिया था। उसे जिस तरह की सूचना के द्वारा गिरफ्तार किया गया, उससे स्पष्ट होता है कि बिना विश्वासघात के, भारतीय डाकू रॉय को कोई पकड़ नहीं सकता था। -The Kadina and Wallaroo Times (SA), October 19, 1889 टंट्या आम डाकू नहीं था। वह महान था। उसने देश के उन संवैधानिक अधिकारियों को शून्य बना दिया था, जिन्हें देश का उद्धारक कहा जाता है। उसके पास मानव जीवन के सभी नैतिक मूल्य थे। उसमें न्याय, दया, सौम्यता, करूणा, सत्यता, संयम, साहस और मित्रता के महान गुण थे। उसका जीवन अध्ययन योग्य है। उसमें सभी ज्ञानवर्द्धक निर्देश भरे पड़े थे। यद्यपि उसने कुछ की नाक काटी, हत्या की और हंसी उड़ाई लेकिन उसने बहुत से गरीबों की गरीबी दूर कर दी। हम उसके लिए बह रहे आंसुओं पर विराम नहीं लगा सकते। उसकी छलपूर्वक गिरफ्तारी करा देने से किसका दिल नहीं रोयेगा?’ -Taunton Courier and Western Advertise, August 13, 1890