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हम जिस सामाजिक परिवेश और दौर में रह रहे हैं वहाँ जातिय और लैंगिक तथा आर्थिक तथा राजनीतिक-सामाजिक विचारधाराओं का भेद इतना ज़्यादा जटिल और गहरा है कि अगर इस पर कोई भी क़लम मुखर होकर बोले, तो वह उन विडंबनाओं और रूढ़ियों को ख़ुद पर हमला लगता है। ऐसे में ज़ाहिर है कि वे पलटवार करेंगे, क़लम के विरोध में आक्रामक होंगे। इसलिए किसी भी कलम के लिए रूढ़ियों के खिलाफ़ लिखने का मतलब उस ख़तरे के लिए तैयार रहना है जो रूढ़ियों की तरफ़ से होगा। इसलिए भूमिका में मैंने अपने मारे जाने की ही ज़मानत लिखी है। दरअसल, मैं उन हमलों के लिए तैयार हूँ।